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पिंडदान गया जी

मै गया जी तीर्थ पुरोहित गया जी आने वाले सभी तीर्थ यात्रियों का ज्ञान एवं मोक्ष की भूमि में स्वागत है। उत्तरप्रदेश, राज्स्थान, मध्यप्रदेश, बिहार व अन्य राज्य एवं अप्रवासी भारतीय औऱ हिन्दू सनातन धर्मा अभिलम्बियों को गया पितृ श्राद्ध एवं पूजा से सम्बंधित सभी कार्य को विधिवत मार्ग दर्शन देने के लिए पूर्णतया सन्नद्ध हूँ |

गया जी तीर्थ में पितरों के निर्मित होने वाले श्राद्ध , पित्तरों/पूर्वजों का पिंड दान, तर्पण, गया जी श्राद्ध, पितृ दोष निवारण पूजा, त्रिपिंडी श्राद्ध, कुंडली दोष, नारायणबलि श्राद्ध, पितृपक्ष श्राद्ध, अमावस्या श्राद्ध, वार्षिक श्राद्ध , तिथि श्राद्ध एवं गयातीर्थ विष्णुपद मंदिर में होने वाले कर्मकांड पूजनकर्म तुलसी अर्चना, ,रात्रि श्रृंगार पूजा, महापूजा,अभिषेक एवं गया जी में होने वाले का अन्य कई तरह का पूजा के लिए सेवा प्रदान करता हूं ।

गया तीर्थ में श्राद्ध तर्पण पिंडदान एक दिवसीय ,तीन दिवसीय ,पांच दिवसीय ,सात दिवसीय ,सत्रह दिवसीय करने का उल्लेख है ,जो कि शास्त्र सम्मत है ।

हमारे यहाँ ठहरने के लिए उत्तम प्रबन्ध है - धर्मशाला उपलब्ध कराये जाते है जो तीर्थ यात्रियों के लिए पूर्णत: नि:शुल्क है। अतः होटल, गेस्ट हाउस , सर्विस गाइड, वाहन व अन्य सेवाओं भी उपलब्ध कराये जाते है |

Why Gaya Ji

पिंडदान के लिए गया जी ही क्यो ?


विश्व में पितरों की मुक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थल गया बिहार में है |

बिहार की राजधानी पटना से करीब 104 किलोमीटर की दूरी पर बसा है गया जिला। धार्मिक दृष्टि से गया न सिर्फ हिन्दूओं के लिए बल्कि बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए भी आदरणीय है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे महात्मा बुद्ध का ज्ञान क्षेत्र मानते हैं जबकि हिन्दू गया को मुक्तिक्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हैं। – इसलिए हर दिन देश के अलग-अलग भागों से नहीं बल्कि विदेशों में भी बसने वाले हिन्दू आकर गया में आकर अपने परिवार के मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान करते हैं। गया को मोक्ष स्थली का दर्ज़ा एक राक्षस गयासुर के कारण मिला है |

श्राद्ध की मूल कल्पना वैदिक दर्शन के कर्मवाद और पुनर्जन्मवाद पर आधारित है। कहा गया है कि आत्मा अमर है, जिसका नाश नहीं होता। श्राद्ध का अर्थ अपने देवताओं, पितरों और वंश के प्रति श्रद्धा प्रकट करना होता है।

मान्यता है कि जो लोग अपना शरीर छोड़ जाते हैं, वे किसी भी लोक में या किसी भी रूप में हों, श्राद्ध पखवाड़े में पृथ्वी पर आते हैं और श्राद्ध व तर्पण से तृप्त होते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है। यूं तो देश के कई स्थानों में पिंडदान किया जाता है, परंतु बिहार के फल्गु तट पर बसे गया में पिंडदान का बहुत महत्व है।

Our Services

गया तीर्थ व विष्णुपाद मंदिर की ऐतिहासिक पौरणिक कथा ।



" पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पृथ्वी पर तीन ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें पिंडदान के लिए सबसे उत्तम माना गया है। ये हैं: बद्रीनाथ का ब्रह्मकपाल क्षेत्र, हरिद्वार का नारायणी शिला क्षेत्र और बिहार का गया क्षेत्र। तीनों स्थान ही पितरों की मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण स्थान हैं। लेकिन इनमें गया क्षेत्र का विशेष महत्व है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ स्थित हैं कुछ ऐसे दिव्य स्थान जहाँ पिंडदान करने से पूर्वजों को साक्षात भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उन्हें मुक्ति मिलती है। इसी गया क्षेत्र में स्थित है अतिप्राचीन विष्णुपद मंदिर जो सनातन के अनुयायियों में सबसे पवित्र माना गया है।

इस मंदिर में स्थित हैं भगवान विष्णु के चरणचिह्न जिनके स्पर्श मात्र से ही मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है। ये फल्गु महानदी के तट पर बसा हुआ अतिरमणीय , सर्वथा कल्याणकारी मोक्षदायनी पितृ मोक्ष तीर्थ गया जी के नाम से विश्वविख्यात है । फल्गु नदी के पश्चिम तट के दक्षिण मध्य में भगवान विष्णु नारायण का मंदिर (वेदी ) है ।

गर्भगृह में श्री विष्णुपाद की चरण प्रतिष्ठा है । फल्गु महानदी के पश्चिम किनारे पर बसा हुआ यह विशाल अति प्राचीन और परम पावन मंदिर पितरों के श्राद्ध का केंद्र रहा है । श्राद्ध कर्म की परंपरा हमारे सनातन भारतीय संस्कृति में अति प्राचीन है । जिसमे श्रेष्ठ जन धर्म का अनुपालन करते है और परम्परा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते है ।शास्त्रों के वचनानुसार यह परम्परा जितनी पुरानी है ,उतनी पुरानी गया जी व गया जी स्थित इस मंदिर (वेदी) का इतिहास ।

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